الجمعة، 28 أكتوبر 2011

हज्ज का हुक्म


हज्ज का हुक्म

हज्ज का हुक्म क्या है, तथा उसकी अनिवार्यता का इंकार करने वाले का क्या हुक्म है ?

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान अल्लाह के लिए योग्य है।

हज्ज इस्लाम के स्तंभों में से एक स्तंभ है। अतः जिस आदमी ने उसका इंकार किया या उससे द्वेष और बुग़्ज़ रखा तो वह काफिर है, उस से तौबा करवाया जायेगा, यदि वह तौबा कर लेता है तो ठीक है, अन्यथा उसे क़त्ल कर दिया जायेगा। तथा हज्ज करने पर सक्षम आदमी के ऊपर अनिवार्य है कि वह हज्ज के फरीज़ा की अदायगी में शीघ्रता से काम ले ; क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान है:

 ﴿وَلِلهِ عَلَى النَّاسِ حِجُّ الْبَيْتِ مَنِ اسْتَطَاعَ إِلَيْهِ سَبِيلًا وَمَنْ كَفَرَ فَإِنَّ اللهَ غَنِيٌّ عَنِ الْعَالَمِينَ    [آل عمران : 97]

"अल्लाह तआला ने उन लोगों पर जो उस तक पहुँचने का सामर्थ्य रखते हैं इस घर का हज्ज करना अनिवार्य कर दिया है, और जो कोई कुफ्र करे (न माने) तो अल्लाह तआला (उस से बल्कि) सर्व संसार से बेनियाज़ है।" (सूरत आल-इम्रान : 97)

और अल्लाह तआला ही तौफीक़ प्रदान करने वाला है।

इफ्ता और वैज्ञानिक अनुसंधान की स्थायी समिति के फतावा (11/11).

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