الجمعة، 28 أكتوبر 2011

हज्ज की तात्कालिक अनिवार्यता




हज्ज की तात्कालिक अनिवार्यता

क्या हज्ज पर सक्षम आदमी के लिए कई वर्षों तक हज्ज को विलंब करना जाइज़ है ?



हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान अल्लाह के लिए योग्य है।

जो आदमी हज्ज करने की ताक़त रखता है और उसके अंदर हज्ज के अनिवार्य होने की शर्तें पूरी हैं, तो उस पर तत्कालीन हज्ज करना अनिवार्य है, और उसके लिए उसे विलंब करना जाइज़ नहीं है।

इब्ने क़ुदामा रहिमहुल्लाह ने "अल-मुग़्नी" में फरमाया:

"जिस आदमी पर हज्ज वाजिब हो गया और उसके लिए उसको करना संभव है, तो उस पर वह तत्कालीन ही अनिवार्य है और उसके लिए उसे विलंब करना जाइज़ नहीं है। यही बात इमाम अबू हनीफा और इमाम मालिक ने भी कही है। इस कथन का आधार अल्लाह तआला का यह फरमान है:

﴿وَلِلهِ عَلَى النَّاسِ حِجُّ الْبَيْتِ مَنِ اسْتَطَاعَ إِلَيْهِ سَبِيلًا وَمَنْ كَفَرَ فَإِنَّ اللهَ غَنِيٌّ عَنِ الْعَالَمِينَ    [آل عمران : 97]

"अल्लाह तआला ने उन लोगों पर जो उस तक पहुँचने का सामर्थ्य रखते हैं इस घर का हज्ज करना अनिवार्य कर दिया है, और जो कोई कुफ्र करे (न माने) तो अल्लाह तआला (उस से बल्कि) सर्व संसार से बेनियाज़ है।" (सूरत आल-इम्रान: 97)

और अम्र (अर्थात् आदेश) तुरंत करने के लिए होता है। तथा नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से वर्णित है कि आपने फरमाया: "जो आदमी हज्ज का इरादा करे तो उसे जल्दी करनी चाहिए।" इसे इमाम अहमद, अबू दाऊद और इब्ने माजा ने रिवायत किया है। तथा अहमद और इब्ने माजा की रिवायत में है कि: "क्योंकि आदमी बीमारी से ग्रस्त हो सकता है, सवारी गायब हो सकती है और आदमी को कोई आवश्यकता घेर सकती है।" अल्बानी ने सहीह इब्ने माजा में इसे हसन कहा है।" कुछ संशोधन के साथ अंत हुआ।

अम्र (आदेश) के तत्कालीन होने का अर्थ यह है कि: मुकल्लफ आदमी के ऊपर उस चीज़ को करना जिसका उसे आदेश दिया गया है मात्र उसके करने पर सक्षम होतो ही करना अनिवार्य है, और उसके लिए बिना किसी उज़्र (कारण) के उसे विलंब करना जाइज़ नहीं है।

तथा शैख इब्ने उसैमीन रहिमहुल्लाह से प्रश्न किया गया कि: क्या हज्ज की अनिवार्यता तत्कालीन है या विलंब के साथ है ?

तो उन्हों ने उत्तर दिया:

"सहीह बात यह है कि वह तत्कालीन अनिवार्य है, और यह कि उस मनुष्य के लिए जो अल्लाह के पवित्र घर का हज्ज करने पर सक्षम है, उसे विलंब करना जाइज़ नहीं है। इसी प्रकार सभी शरई वाजिबात (धार्मिक कर्तव्य) यदि वे किसी समय या कारण के साथ मुक़ैयद नहीं हैं तो वे तत्कालीन (तुरंत) ही अनिवार्य हैं।"

फतावा इब्ने उसैमीन (21/13).


हज्ज की फज़ीलत


     

हज्ज की फज़ीलत

क्या हज्ज मबरूर बड़े गुनाहों को क्षमा कर देता है ?



हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान अल्लाह के लिए योग्य है।

सहीहैन (सहीह बुखारी व सहीह मुस्लिम) में अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से साबित है कि उन्हों ने कहा कि मैं ने अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को फरमाते हुए सुना: "जिस व्यक्ति ने हज्ज किया और (उसके दौरान) संभोग (और कामुक वार्तालाप) तथा गुनाह और नाफरमानी (पाप एंव अवज्ञा) नहीं किया तो वह उस दिन के समान निर्दोष हो जाता है जिस दिन कि उसकी माँ ने उसे जना था।" सहीह बुखारी (हदीस संख्या: 1521) सहीह मुस्लिम (हदीस संख्या: 1350)

तथा आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:

"एक उम्रा से दूसरा उम्रा, उनके बीच के गुनाहों का कफ्फारा (परायश्चित) है, और मबरूर हज्ज का बदला जन्नत ही है।" इसे बुखारी (हदीस संख्या: 1773) और मुस्लिम (हदीस संख्या: 1349) ने रिवायत किया है।

अतः हज्ज और उसके अतिरिक्त अन्य नेक काम गुनाहों को मिटाने के कारणों में से हैं, यदि बंदा उन्हें उनके शरई तरीक़े के अनुसार अंजाम देता है। विद्वानों की बहुमत (जम्हूर उलमा) इस बात की ओर गयी है कि नेक कार्य (आमाले सालिहा) केवल छोटे गुनाहों को मिटाते हैं। जहाँ तक बड़े गुनाहों की बात है तो उनके लिए तौबा करना ज़रूरी है। उन्हों ने उस हदीस से दलील पकड़ी है जिसे मुस्लिम ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:

"पाँच समय की नमाज़ें, एक जुमा से दूसरा जुमा और एक रमज़ान से दूसरा रमज़ान, उनके बीच होने वाले गुनाहों के लिए कफ्फारा हैं यदि बड़े गुनाहों से बचा जाये।" इसे मुस्लिम (1/209) ने रिवायत किया है।

जबकि इमाम इब्नुल मुंज़िर रहिमहुल्लाह और विद्वानों का एक समूह इस बात की तरफ गया है कि हज्ज मबरूर सभी गुनाहों को मिटा देता है, उन्हों ने उपर्युक्त दोनों हदीसों के प्रत्यक्ष अर्थ से दलील पकड़ी है।

और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।

देखिये: इफ्ता और वैज्ञानिक अनुसंधान की स्थायी समिति का फतावा (11/13).






हज्ज का हुक्म


हज्ज का हुक्म

हज्ज का हुक्म क्या है, तथा उसकी अनिवार्यता का इंकार करने वाले का क्या हुक्म है ?

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान अल्लाह के लिए योग्य है।

हज्ज इस्लाम के स्तंभों में से एक स्तंभ है। अतः जिस आदमी ने उसका इंकार किया या उससे द्वेष और बुग़्ज़ रखा तो वह काफिर है, उस से तौबा करवाया जायेगा, यदि वह तौबा कर लेता है तो ठीक है, अन्यथा उसे क़त्ल कर दिया जायेगा। तथा हज्ज करने पर सक्षम आदमी के ऊपर अनिवार्य है कि वह हज्ज के फरीज़ा की अदायगी में शीघ्रता से काम ले ; क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान है:

 ﴿وَلِلهِ عَلَى النَّاسِ حِجُّ الْبَيْتِ مَنِ اسْتَطَاعَ إِلَيْهِ سَبِيلًا وَمَنْ كَفَرَ فَإِنَّ اللهَ غَنِيٌّ عَنِ الْعَالَمِينَ    [آل عمران : 97]

"अल्लाह तआला ने उन लोगों पर जो उस तक पहुँचने का सामर्थ्य रखते हैं इस घर का हज्ज करना अनिवार्य कर दिया है, और जो कोई कुफ्र करे (न माने) तो अल्लाह तआला (उस से बल्कि) सर्व संसार से बेनियाज़ है।" (सूरत आल-इम्रान : 97)

और अल्लाह तआला ही तौफीक़ प्रदान करने वाला है।

इफ्ता और वैज्ञानिक अनुसंधान की स्थायी समिति के फतावा (11/11).