الثلاثاء، 30 أغسطس 2011

ईद के शिष्टाचार

ईद के शिष्टाचार

वे कौन सी सुन्नतें और शिष्टाचार हैं जिनकी हमें ईद के दिन पाबंदी करनी चाहिए
हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।
वे सुन्नतें जिनका एक मुसलमान को ईद के दिन ध्यान रखना चाहिए निम्नलिखित हैं:
1- नमाज़ के लिए निकलने से पूर्व स्नान करना:
मुवत्ता वगैरह में शुद्ध रूप से प्रमाणित है कि अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हुमा ईदुल फित्र के दिन ईदगाह जाने से पहले स्नान किया करते थे। (अल-मुवत्ता / 428) तथा नववी रहिमहुल्लाह ने ईद की नमाज़ के लिए स्नान करने के मुस्तहब होने पर विद्वानों की सर्वसहमति का उल्लेख किया है।
तथा वह अर्थ जिसके कारण जुमा और अन्य सार्वजनिक समारोहों के लिए स्नान करना मुस्तहब करार दिया गया है वह ईद में भी मौजूद है बल्कि वह ईद में अधिक स्पष्ट रूप से पाया जाता है।
2- ईदुल फित्र में नमाज़ के लिए निकलने से पूर्व और ईदुल अज़्हा (क़ुर्बानी की ईद) में नमाज़ के बाद खाना:
ईद के शिष्टाचार में से यह है कि आदमी ईदुल फित्र में नमाज़ के लिए न निकले यहाँ तक कि कुछ खजूरें खा ले। क्योंकि बुखारी ने अनस बिन मालिक रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्हों ने कहा : अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ईदुल फित्र के दिन नहीं निकलते थे यहाँ तक कि कुछ खजूरें खा लेते थे . . . और उन्हें ताक़ (विषम) संख्या में खाते थे। (बुखारी,  हदीस संख्या : 953)
ईदुल फित्र की नमाज़ के लिए निकलने से पूर्व खाना उस दिन रोज़ा रखने के निषेद्ध में अतिशयोक्ति करते हुए, तथा रोज़ा तोड़ने और रोज़े के समाप्त होने की सूचना देते हुए मुस्तहब करार दिया गया है।
तथा हाफिज़ इब्ने हजर ने इसका यह कारण वर्णन किया है कि इसमें रोज़े के अंदर वृद्धि करने के रास्ते को बंद करना पाया जाता है, तथा इसमें अल्लाह के आदेश का पालन करने में जल्दी और पहल करने का तत्व है। (फत्हुल बारी 2 / 446)
और जो व्यक्ति खजूर न पाए वह किसी भी जाइज़ चीज़ के द्वारा रोज़ा तोड़ दे।
जहाँ तक ईदुल अज़्ह़ा का संबंध है तो मुस्तहब यह है कि आदमी कोई चीज़ न खाए यहाँ तक कि नमाज़ से वापस आ जाए फिर अपनी क़ुर्बानी के गोश्त से खाए यदि उसके यहाँ क़ुर्बानी है, और यदि उसके यहाँ क़ुर्बानी नहीं है तो नमाज़ से पहले खाने में कोई आपत्ति की बात नहीं है।
3- ईद के दिन तक्बीर कहना:
यह ईद के दिन महान सुन्नतों में से है, क्योंकि अल्लाह तआला का फरमान है :
﴿ ولتكملوا العدة ولتكبروا الله على ما هداكم ولعلكم تشكرون ﴾ [البقرة : 185]
 और ताकि तुम गिंती पूरी कर लो, और अल्लाह के प्रदान किए हुए मार्गदर्शन के अनुसार उसकी बड़ाई (महानता) का वर्णन करो और तुम उसके आभारी बनो। (सूरतुल बक़राः 185)
तथा वलीद बिन मुस्लिम से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : मैं ने औज़ाई और मालिक बिन अनस से ईदैन में तक्बीर का प्रदर्शन करने के बारे में पूछा तो उन दोनों ने कहा : हाँ, अब्दुल्लाह बिन उमर ईदुल फित्र के दिन उसका प्रदर्शन करते थे यहाँ तक कि इमाम बाहर निकलता था।
तथा अबू अब्दुर्रहमान अस्सुलमी से प्रमाणित है कि उन्हों ने कहा : (वे लोग ईदुल फित्र में ईदुल अज़हा से अधिक सख्त होते थे). वकीअ़ ने कहा अर्थात तक्बीर कहने में। देखिए इर्वाउल गलील (3 / 122)
तथा दारक़ुतनी वगैरह ने रिवायत किया है कि इब्ने उमर जब ईदुल फित्र के दिन और ईदुल अज़्हा के दिन निकलते थे तो तक्बीर कहने में संघर्ष करते थे यहाँ तक कि ईदगाह आते फिर तक्बीर कहते यहाँ तक कि इमाम (नमाज़ पढ़ाने के लिए) निकलता था।
तथा इब्ने अबी शैबा ने सही सनद के साथ ज़ोहरी से वर्णन किया है कि उन्हों ने कहा : (लोग ईद में जब अपने घरों से निकलते थे तो तक्बीर कहते थे यहाँ तक कि वे ईदगाह आते और यहाँ तक कि इमाम बाहर निकलता। जब इमाम निकल आता तो वे चुप हो जाते थे। फिर जब वह तक्बीर कहता तो लोग भी तक्बीर कहते थे)। देखिएः इर्वाउल गलील (2 / 121)
घर से ईदगाह की तरफ निकलने और इमाम के आने तक तक्बीर कहना सलफ (पूर्वजों) के निकट एक बहुत प्रसिद्ध बात थी, तथा मुसन्नेफीन के एक समूह जैसे कि इब्ने अबी शैबा, अब्दुर्रज़्ज़ाक़ और फिर्याबी ने किताब (अहकामुल ईदैन) में इसे सलफ के एक समूह से उल्लेख किया है, उसी में से यह उद्धरण है कि नाफे बिन जुबैर तक्बीर कहते थे और लोगों के तक्बीर न कहने से आश्चर्य करते थे, चुनाँचे वे कहते थे : (आप लोग तक्बीर क्यों नहीं कहते).
तथा इब्ने शिहाब ज़ोहरी रहिमहुल्लाह कहा करते थे : (लोग अपने घरों से निकलने से लेकर इमाम के प्रवेश करने तक तक्बीर कहते थे।)
ईदुल फित्र में तक्बीर का समय ईद की रात से शुरू होता है और इमाम के ईद की नमाज़ के लिए आने तक रहता है।
तथा ईदुल अज़्हा में तक्बीर ज़ुलहिज्जा के पहले दिन से शुरू होता है और तश्रीक़ (11-13 ज़ुलहिज्जा) के अंतिम दिन सूरज डूबने तक रहता है।
तक्बीर का तरीक़ा :
मुसन्नफ इब्ने अबी शैबा में सहीह सनद के साथ इब्ने मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि : वह तश्रीक़ (11, 12, 13 ज़ुलहिज्जा) के दिनों में यह तक्बीर कहते थे : अल्लाहु अक्बर, अल्लाहु अक्बर, ला इलाहा इल्लल्लाह, वल्लाहु अक्बर, अल्लाहु अक्बर व लिल्लाहिल हम्द (अल्लाह बहुत महान है, अल्लाह बहुत महान है, अल्लाह के सिवा कोई वास्तविक पूज्य नहीं, और अल्लाह बहुत महान है, अल्लाह बहुत महान है, और हर प्रकार की प्रशंसा केवल अल्लाह के लिए है)। तथा इसे इब्ने अबी शैबा ने दूसरी बार इसी सनद से तक्बीर (अल्लाहु अक्बर) के शब्द को तीन बार रिवायत किया है।
तथा अल-महामिली ने सहीह सनद के साथ इब्ने मसऊद रज़ियल्लाहु अन्हु से ही तक्बीर के ये शब्द रिवायत किए हैं : अल्लाहु अक्बर कबीरा, अल्लाहु अक्बर कबीरा, अल्लाहु अक्बर व अजल्ल, अल्लाहु अक्बर व लिल्लाहिल हम्द।” देखिए : इर्वाउल गलील (3/126)


  
4- बधाई देना :
ईद के शिष्टाचार में से अच्छी बधाई भी है जिसका लोग आपस में आदान प्रदान करते हैं उसके जो भी शब्द हों, उदाहरण के तौर पर कुछ लोगों का यह कहना : तक़ब्बलल्लाहु मिन्ना व मिन्कुम” (अल्लाह हमारे और आपके आमाल स्वीकार करे) या ईद मुबारक या इसके समान बधाई के अन्य वाक्य।
तथा जुबैर बिन नुफैर से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सहाबा जब ईद के दिन मिलते थे तो एक दूसरे से कहते थे: तुक़ुब्बिला मिन्ना व मिन्क (हम से और आपसे क़बूल किया जाए)। इब्ने हजर ने कहा है कि : इसकी इसनाद सही है। फत्हुल बारी (2/446)
बधाई देना सहाबा के निकट परिचित और प्रसिद्ध था, और विद्वानों जैसे कि इमाम अहमद वग़ैरह ने इसकी रूख्सत दी है, तथा ऐसी चीज़ें वर्णित हैं जो इस पर तर्क हैं जैसेकि अवसरों पर बधाई देने की वैद्धता, तथा सहाबा का कोई प्रसन्नता प्राप्त होने पर एक दूसरे को बधाई देना उदाहरण के तौर पर अल्लाह तआला किसी व्यक्ति की तौबा को स्वीकार कर लेता तो वे लोग उसे इसकी बधाई देते थे, इत्यादि।
इसमें कोई संदेह नहीं कि यह बधाई देना अच्छे व्यवहार और मुसलमानों के बीच अच्छे सामाजिक दर्शनों में से है।
तथा बधाई के विषय में कम से कम इतनी बात कही जा सकती है कि जो आपको ईद की बधाई दे उसे आप भी ईद की बधाई दें, और यदि वह चुप रहे तो आप भी खामोश रहें, जैसाकि इमाम अहमद रहिमहुल्लाह ने कहा है : यदि कोई मुझे बधाई देता है तो मैं उसे बधाई का उत्तर दूँगा अन्यथा मैं स्वयं आरंभ नहीं करूँगा।
5- ईद के लिए सुशोभित होना :
अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने कहा उमर ने इस्तबरक़ (मोटा रेशम) का एक जुब्बा लिया जो बाज़ार में बेचा जा रहा था, और उसे लेकर अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास और कहा, ऐ अल्लाह के पैगंबर आप इसे खरीद लें इसके द्वारा आप ईद और प्रतिनिधि मंडल के लिए अपने आपको सुशोभित करें, तो अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उनसे कहाः यह ऐसे व्यक्ति का पोशाक है जिसका कोई हिस्सा नहीं है ... इसे बुखारी (हदीस संख्या : 948) ने रिवायत किया है।
तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हु के ईद के लिए सुशोभित होने की बात पर सहमति जताई किंतु उनकी उस जुब्बे को खरीदने की बात का खंडन किया ; क्योंकि वह रेशम का था।
तथा जाबिर रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि उन्हों ने कहा : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास एक जुब्बा था जिसे आप दोनों ईदों और जुमा के दिन पहनते थे। (सहीह इब्ने खुज़ैमा : 1765)
तथा बैहक़ी ने सहीह सनद के साथ रिवायत किया है कि इब्ने उमर ईद के लिए अपना सबसे खूबसूरत कपड़ा पहनते थे।
अतः आदमी को चाहिए कि ईद के लिए निकलते समय उसके पास जो सबसे अच्छा कपड़ा हो उसे पहने।
जहाँ तक महिलाओं का संबंध है तो जब वे बाहर निकलेंगीं तो श्रृंगार से दूर रहेंगी क्योंकि उन्हें पराये मर्दों के लिए श्रृंगार का प्रदर्शन करने से मना किया गया है, इसी प्रकार जो औरत बाहर निकलना चाहती है उसके ऊपर सुगंध लगाना या पराये मर्दों को फित्ने में डालना हराम (निषिद्ध) है, क्योंकि वह उपासना और आज्ञाकारिता के लिए निकली है।
6- नमाज़ के लिए एक रास्ते से जाना और दूसरे रास्ते से वापस आना:
जाबिर बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु अन्हुमा से वर्णित है कि उन्हों ने कहा कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ईद के दिन रास्ता बदल देते थे। इसे बुखारी (हदीस संख्या : 986) ने रिवायत किया है।
कहा गया है कि इसकी हिक्मत (तत्वदर्शिता) यह है कि परलोक के दिन अल्लाह के पास दोनों रास्ते उसके लिए गवाही दें, तथा क़ियामत के दिन धरती, उसके ऊपर जो अच्छाई और बुराई की गई है उसको बयान करे।
तथा यह बात भी कही गई है किः यह दोनों रास्ते में इस्लाम के प्रतीक का प्रदर्शन करने के लिए है।
तथा एक कथन यह है किः यह अल्लाह के स्मरण (ज़िक्र) का प्रदर्शन करने के लिए है।
तथा कहा गया है किः यह मुनाफिक़ों (पाखंडियों) और यहूदियों को क्रोध दिलाने के लिए है और ताकि वह उसके साथ जो लोग हैं उनकी अधिकता से उन्हें भयभीत करे।
तथा यह भी कहा गया है किः ऐसा इसलिए है ताकि लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करे जैसे कि फत्वा पूछना, शिक्षा देना, अनुसरण, तथा ज़रूरतमंदों पर दान करना, या ताकि अपने रिश्तेदारों की ज़ियारत करे और अपने निकट संबंधियों के साथ सद्व्यवहार करे।
और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।
इस्लाम प्रश्न और उत्तर


الأحد، 28 أغسطس 2011

ज़कातुल फित्र का समय और उसकी मात्रा

ज़कातुल फित्र का समय और उसकी मात्रा

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान अल्लाह के लिए योग्य है।
सदक़तुल फित्र हर उस मुसलमान पर अनिवार्य है जिसके ऊपर स्वयं उसका खर्च अनिवार्य है यदि उसके पास ईद के दिन और उसकी रात को उसके भोजन और उसके अधीन लोगों के भोजन से अतिरिक्त एक साअ (गल्ला इत्यादि) बाक़ी बचता है।
इस विषय में असल (मूल प्रमाण) वह हदीस है जो इब्ने उमर रज़ियल्लाहु अन्हु से प्रमाणित है कि उन्हों ने फरमाया: "अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने एक साअ खजूर, या एक साअ जौ ज़कातुल फित्र, मुसलमानों में से गुलाम और आज़ाद, पुरूष और स्त्री, छोटे और बड़े पर अनिवार्य कर दिया है, और उसे लोगों के नमाज़ के लिए निकलने से पूर्व अदा कर देने का आदेश दिया है।" (सहीह बुखारी व सहीह मुस्लिम, और हदीस के शब्द सहीह बुखारी के हैं)
तथा दूसरा प्रमाण अबू सईद खुदरी रज़ियल्लाहु अन्हु की हदीस है कि उन्हों ने फरमाया: "जब अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हमारे बीच मौजूद थे तो हम ज़कातुल फित्र एक साअ खाना (खादपदार्थ), या एक साअ खजूर, या एक साअ जौ, या एक साअ किशमिश, या एक साअ पनीर निकालते थे।" (सहीह बुखारी व सहीह मुस्लिम)
तथा आदमी के लिए शहर के आहार उदाहरण के तौर पर चावल इत्यादि से एक साअ निकालना काफी है।
यहाँ साअ से अभिप्राय नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का साअ है और वह एक औसत आदमी की दोनों हथेलियों से चार लप होता है।
यदि कोई आदमी ज़कातुल फित्र नहीं निकालता है तो वह दोषी और गुनाहगार है और उसके ऊपर क़ज़ा करना (यानी समय निकल जाने के बाद भी उसे निकालना) अनिवार्य है।
जहाँ तक उस हदीस का संबंध है जिसका आप ने उल्लेख खिया है, तो हमें उसके सही होने का ज्ञान नहीं है।
हम अल्लाह तआला से दुआ मांगते हैं कि वह आप को तौफीक़ प्रदान करे, तथा हमारे और आप के लिए कथन ओर कर्म को सुधार दे। और अल्लाह तआला ही तौफीक़ प्रदान करने वाला (शक्ति का स्रोत) है।



الثلاثاء، 23 أغسطس 2011

लैलतुल क़द्र (शबे-क़द्र) की फज़ीलत

लैलतुल क़द्र (शबे-क़द्र) की फज़ीलत
पंद्रह शाबान की क्या फज़ीलत (प्रतिष्ठा) है, क्या यह वही रात है जिसके अंदर अगले साल के लिए प्रति व्यक्ति के भाग्य का फैसला किया जाता है ?
तथा सूरत अद्दुखान में वर्णित रात का अभिप्राय क्या है, क्या यह शाबान के महीने की रात है, या वह लैलतुल क़द्र (शबे-क़द्र) है ?

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।
आधे शाबान (या पंद्रह शाबान) की रात उसके अलावा अन्य रातों के समान ही है, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से कोई ऐसी चीज़ साबित नहीं है जो इस बात पर तर्क स्थापित करती हो कि उस रात में लोगों के अंजाम या उनके भाग्यों को सुनिश्चित किया जाता है। प्रश्न संख्या (8907) देखिये।
जहाँ तक उस रात का प्रश्न है जो अल्लाह तआला के कथन :
﴿ إِنَّا أَنْزَلْنَاهُ فِي لَيْلَةٍ مُبَارَكَةٍ إِنَّا كُنَّا مُنْذِرِينَ فِيهَا يُفْرَقُ كُلُّ أَمْرٍ حَكِيمٍ ﴾ [الدخان : 3-4]
निःसंदेह हम ने इसे एक बरकत वाली रात में उतारा है, निःसंदेह हम डराने वाले हैं। इसी रात में हर एक मज़बूत (महत्वपूर्ण) काम का फैसला किया जाता है। (सूरतुद्-दुखान : 3-4)
में वर्णित है तो अल्लामा इब्ने जरीर तबरी रहिमहुल्ला - अल्लाह उन पर दया करे - का फरमान है :
क़ुरआन के टीकाकारों (भाष्यकारों) ने उस रात के बारे में मतभेद किया है कि वह साल भर की रातों में से कौन सी रात है। तो कुछ लोगों ने कहा है कि : वह लैलतुल क़द्र है, जबकि कुछ अन्य लोगों का कहना है कि वह आधे शाबान (पंद्रहवीं शाबान) की रात है, उन्हों ने कहा : इस बारे में शुद्ध (सही) बात उन लोगों का कथन है जिन्हों ने इस से लैलुत क़द्र (क़द्र की रात) मुराद लिया है, क्योंकि अल्लाह सर्वशक्तिमान ने इस बात की सूचना दी है कि वह रात इसी तरह (अर्थात क़द्र वाली) है और वह अल्लाह तआला का यह कथन है:
﴿إِنَّا أَنْزَلْنَاهُ فِي لَيْلَةِ الْقَدْرِ﴾
निःसंदेह हम ने इसे (यानी क़ुर्आन को) क़द्र वाली रात में उतारा है।
तफसीर तबरी 11/221.
तथा अल्लाह तआला का फरमान:  
﴿فِيهَا يُفْرَقُ كُلُّ أَمْرٍ حَكِيمٍ ﴾
 इसी रात में हर मज़बूत काम का फैसला किया जाता है। की व्याख्या करते हुए इब्ने हजर ने सहीह बुखारी की व्याख्या में फरमाया : इसका अर्थ यह है कि उसमें उस वर्ष के अहकाम मुक़द्दर किये जाते हैं इसलिए कि अल्लाह का फरमान है कि इसी रात में हर एक मज़बूत काम का फैसला किया जाता है। और नववी ने इसी के द्वारा अपनी बात का आरंभ किया है, उन्हों ने फरमाय : उलमा ने कहा है कि इस रात का नाम लैलतुल क़द्र इसलिए रखा गया है कि फरिश्ते इसमें भाग्यों (अक़दार) को लिखते हैं क्योंकि अल्लाह का फरमान है : इसी रात में हर एक मज़बूत काम का फैसला किया जाता है। तथा इसे अब्दुर्रज़्ज़ाक़ और उनके अलावा अन्य मुफस्सिरीन ने सहीह असानीद के साथ मुजाहिद, इकरिमा और क़तादा वगैरह से रिवायत किया है।
लैलतुल क़द्र की उस आदमी के लिए बहुत फज़ीलत है जो उसमें अच्छा कार्य करे और इबादत में संघर्ष करे।
अल्लाह तआला ने फरमाया:
﴿إِنَّا أَنْزَلْنَاهُ فِي لَيْلَةِ الْقَدْرِ (1) وَمَا أَدْرَاكَ مَا لَيْلَةُ الْقَدْرِ (2) لَيْلَةُ الْقَدْرِ خَيْرٌ مِنْ أَلْفِ شَهْرٍ (3) تَنَزَّلُ الْمَلائِكَةُ وَالرُّوحُ فِيهَا بِإِذْنِ رَبِّهِمْ مِنْ كُلِّ أَمْرٍ (4) سَلامٌ هِيَ حَتَّى مَطْلَعِ الْفَجْرِ (5)﴾  [سورة القدر : 1-5]
निःसन्देह हम ने इसे क़द्र (प्रतिष्ठा) की रात में उतारा है। और आप को किस चीज़ ने सूचना दी कि क़द्र की रात क्या है क़द्र की रात एक हज़ार महीने से अधिक श्रेष्ठ है। इस (रात) में फरिश्ते और रूह (जिब्रील) अपने रब के हुक्म से हर काम के लिए उतरते हैं। यह रात फज्र के निकलने तक शान्ति वाली होती है। (सूरतुल क़द्र : 1 – 5)
इस रात की फज़ीलत में बहुत सी हदीसें वर्णित हैं, उन्हीं में वह हदीस है जिसे बुखारी ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु के माध्यम से नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से रिवायत किया है कि आप ने फरमाया : जिस व्यक्ति ने ईमान के साथ और अज्र व सवाब की आशा रखते हुए लैलतुल क़द्र को क़ियामुल्लैल किया (अर्थात् अल्लाह की इबादत में बिताया) तो उसके पिछले गुनाह क्षमा कर दिए जायेंगे, और जिस व्यक्ति ने ईमान के साथ और अज्र व सवाब की आशा रखते हुए रोज़ा रखा उसके पिछले गुनाह क्षमा कर दिए जायेंगे। इसे बुखारी (अस्सौम (रोज़ा) / 1768) ने रिवायत किया है।
और अल्लाह तआला ही सर्वश्रेष्ठ ज्ञान रखता है।
 

الأربعاء، 17 أغسطس 2011

रमज़ान में मुसलमान को कैसा होना चाहिए

रमज़ान में मुसलमान को कैसा होना चाहिए

रमज़ान के महीने के शुभ अवसर पर आप मुसलमानों को क्या सदुपदेश देंगे ?

हर प्रकार की प्रशंसा और गुणगान केवल अल्लाह के लिए योग्य है।
अल्लाह सर्वशक्तिमान का फरमान है:
﴿شَهْرُ رَمَضَانَ الَّذِي أُنْزِلَ فِيهِ الْقُرْآنُ هُدىً لِلنَّاسِ وَبَيِّنَاتٍ مِنَ الْهُدَى وَالْفُرْقَانِ فَمَنْ شَهِدَ مِنْكُمُ الشَّهْرَ فَلْيَصُمْهُ وَمَنْ كَانَ مَرِيضاً أَوْ عَلَى سَفَرٍ فَعِدَّةٌ مِنْ أَيَّامٍ أُخَرَ يُرِيدُ اللَّهُ بِكُمُ الْيُسْرَ وَلا يُرِيدُ بِكُمُ الْعُسْرَ ﴾ [البقرة : 185]
रमज़ान का महीना वह है जिसमें क़ुर्आन उतारा गया जो लोगों के लिए मार्गदर्शक है और जिसमें मार्गदर्शन की और सत्य तथा असत्य के बीच अन्तर की निशानियाँ हैं। तुम में से जो व्यक्ति इस महीना को पाए उसे रोज़ा रखना चाहिए और जो बीमार हो या यात्रा पर हो तो वह दूसरे दिनों में उसकी गिन्ती पूरी करे, अल्लाह तआला तुम्हारे साथ आसानी चाहता है, तुम्हारे साथ सख्ती नहीं चाहता है। (सूरतुल बक़राः 185)
यह शुभ महीना भलाई, बरकत, उपासना और आज्ञाकारिता का एक महान मौसम (ऋत) है।
यह एक महान महीना, और एक दयाशील मौसम है, एक ऐसा महीना जिसमें नेकियों को कई गुना बढ़ा दिया जाता है, जन्नतों के द्वार खोल दिए जाते हैं, जहन्नम के द्वार बंद कर दिये जाते हैं, तथा इसमें पापियों और बुराई करने वालों का अल्लाह के पास तौबा स्वीकार किया जाता है। इस महीने का पहला भाग रहमत का, मध्य भाग क्षमा का और अंतिम भाग नरक से मुक्ति का है।
अतः उसने आपके ऊपर भलाईयों और बरकतों के मौसमों के द्वारा जो अनुकम्पा किया है और तुम्हें प्रतिष्ठा के कारणों और नाना प्रकार की नेमतों से विशिष्ट किया है उन पर उसके आभारी बनो, और श्रेष्ठ समयों और प्रतिष्ठित मौसमों के आगमन को उन्हें नेकियों में लगा कर और हराम चीज़ों को छोड़कर गनीमत जानो, आप सर्वश्रेष्ठ जीवन से सम्मानित होंगे और मरने के बाद सौभाग्य प्राप्त होगा।
सच्चे मोमिन के लिए सभी महीने उपासना के मौसम हैं और पूरा जीवन उसके निकट नेकी (आज्ञाकारिता) का मौसम है, किंतु रमज़ान के महीने में भलाई के लिए उसकी महत्वाकांक्षा बढ़ जाती है और इबादत के लिए उसका दिल अधिक सक्रिय हो जाता है, और वह अपने सर्वशक्तिमान पालनहार की ओर ध्यान आकर्षित करता है, और हमारा पालनहार अपनी दानशीलता और उदारता से रोज़ेदार मोमिनों पर दया करते हुए इस प्रतिष्ठित स्थान पर उनके पुण्य को कई गुना कर दिया और नेक कार्यों पर उनके इनाम और उपहार को भरपूर कर दिया है।
आज की रात कल के कितना समान है  . .
ये दिन बड़ी तेज़ी से गुज़र जाते हैं गोया कि ये कुछ पल की तरह लगते हैं, हम ने रमज़ान का अभिवादन किया फिर उसे रूख्सत कर दिया, और कुछ अवधि के बाद हम दूसरी बार रमज़ान का अभिवादन करने वाले हैं। अतः हमारे ऊपर अनिवार्य है कि इस महान महीने में नेक कार्यों के साथ जल्दी (पहल) करें, और हम उसे ऐसी चीज़ों से भरने के लालायित बनें जो अल्लाह को प्रसन्न करने वाली हो और जो हमें उस दिन सौभाग्य प्रदान करे जिस दिन कि हम उस से मुलाक़ात करेंगे।
हम रमजान के लिए कैसे तैयारी करें ?
रमज़ान में तैयारी शहादतैन (ला इलाहा इल्लल्लाह और मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह की शहादत) को परिपूर्ण करने में कोताही, या वाजिबात (कर्तव्यों) में कोताही, या उन इच्छाओं और संदेहों को छोड़ने में कोताही करने पर जिनमें हम फँस या पड़ जाते है नफस का मुहासबा करके होती है . .
बंदा अपने व्यवहार को ठीक कर ले ताकि वह रमज़ान में ईमान के ऊँचे पद पर हो . . क्योंकि ईमान घटता और बढ़ता है, नेकी (आज्ञाकारिता) से बढ़ता है और अवज्ञा से घटता है, पहली नेकी और आज्ञाकारिता जिसे बंदा परिपूर्ण करता है वह अल्लाह अकेले की बंदगी (उपासना) को परिपूर्ण करना है, और उसके दिल में यह तथ्य बैठ जाये कि अल्लाह के अलावा कोई वास्तविक पूज्य नहीं, अतः सभी प्रकार की इबादतें केवल अल्लाह के लिए करे उसके साथ उसकी इबादत में किसी को साझी न ठहराए। और हम में से हर एक यह विश्वास रखे कि उसे जो चीज़ पहुँची है वह उससे चूकने वाली नहीं थी, और जो चीज़ चूक गई है वह उसे पहुँचने वाली नहीं थी और यह कि हर चीज़ एक अनुमान के अनुसार है।
तथा हम हर उस चीज़ से दूर रहें जो शहादतैन (ला इलाहा इल्लल्लाह और मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह की शहादत) की परिपूर्णता के विरूध है, और वह इस प्रकार कि नवाचार और धर्म में नई चीज़ें पैदा करने से दूर रहें। तथा अल्लाह के लिए दोस्ती व दुश्मनी को साकार करके, इस प्रकार कि हम मोमिनों (विश्वासियों) से दोस्ती रखें और काफिरों और मुनाफिक़ों से दुश्मनी रखें, मुसलमानों के उनके दुश्मनों पर विजय से खुश हों, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और आपके साथियों का अनुसरण करें, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत और आपके बाद मार्गदर्शित पुनीत खुलफा की सुन्नत को अपनायें, तथा आपकी सुन्नत से प्यार करें और सुदृढ़ता के साथ सुन्नत का पालन करने वाले और उसकी रक्षा करने वाले से प्यार करें चाहे वह किसी भी देश, किसी भी रंग और किसी भी राष्ट्र का हो।
इसके बाद नेकियों (आज्ञाकारिता) के करने में लापरवाही पर अपने नफ्स का मुहासबा करें, जैसेकि जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ने, अल्लाह सर्वशक्तिमान का स्मरण करने, पड़ोसी, रिश्तेदारों और मुसलमानों के अधिकारों की अदायगी करने, सलाम को फैलाने, भलाई का आदेश करने और बुराई से रोकने, हक़ बात की वसीयत करने और उस पर सब्र करने, बुराईयों से रूकने, तथा आज्ञाकारिता पर और अल्लाह सर्वशक्तिमान की तक़दीर पर धैर्य से काम लेने में लापरवाही और कोताही।
फिर अवज्ञाओं, पापों और इच्छाओं का पालन करने पर मुहासबा करना इस प्रकार कि अपने नफ्स को उन पर जारी रहने से रोक लेना, चाहे वह पाप छोटा हो यह बड़ा, चाहे वह पाप अल्लाह की हराम की हुई चीज़ की ओर आँख से देखने के द्वारा हो या संगीत को सुनने, या ऐसी चीज़ की तरफ चलकर जाने के द्वारा हो जो अल्लाह की पसंद नहीं है, या अल्लाह तआला की नापसंदीदा चीज़ को दोनों हाथों से पकड़ने के द्वारा हो, या अल्लाह तआला ने जिस चीज़ को हराम कर दिया है उसको खाने के द्वारा हो जैसे कि सूद, रिश्वत (घूँस), या इसके अलावा अन्य चीज़ें जो लोगों के धन को अवैध रूप से खाने के अंतर्गत आती हैं।
और हमारी दृष्टियों के सामने यह बात हो कि अल्लाह सर्वशक्तिमान दिन के समय अपने हाथ को फैलात है ताकि रात का पापी तौबा कर ले, तथा रात के समय अपने हाथ को फैलाता है ताकि दिन का पापी तौबा कर ले, अल्लाह सर्वशक्तिमान का फरमान है :
﴿وسارعوا إلى مغفرة من ربكم وجنة عرضها السموات والأرض أعدت للمتقين .الذين ينفقون في السراء والضراء والكاظمين الغيظ والعافين عن الناس والله يحب المحسنين والذين إذا فعلوا فاحشة أو ظلموا أنفسهم ذكروا الله فاستغفروا لذنوبهم ومن يغفر الذنوب إلا الله ولم يصروا على ما فعلوا وهم يعلمون أولئك جزاؤهم مغفرة من ربهم وجنات تجري من تحتها الأنهار خالدين فيها ونعم أجر العاملين ﴾ [سورة آل عمران : 1333- 136]
 ‘‘और अपने पालनहार की क्षमा की तरफ और उस जन्नत की ओर दौड़ो जिसकी चौड़ाई आसमानों और ज़मीन के बराबर है, जो परहेज़गारों के लिए तैयार की गई है। जो लोग आसानी में और तकलीफ़ में (भी अल्लाह कि राह में) खर्च करते हैं, गुस्से को पी जाते हैं, और लोगों को माफ करने वाले हैं। और अल्लाह नेकोकारों से प्यार करता है। जब उन से कोई बुरा काम हो जाये या कोई गुनाह कर बैठें तो जल्द ही अल्लाह को याद और अपने गुनाहों के लिए तौबा करते हैं, और वास्तव में अल्लाह के सिवाय कौन गुनाहों को माफ कर सकता है, और वे जानते हुए अपने किए पर इसरार नहीं करते हैं। उन्हीं का बदला उनके पालनहार की ओर से माफी और ऐसे बाग हैं जिनके नीचे नहरें बह रही हैं जिस में वे हमेशा रहेंगे और नेक कार्य करने वालों का यह कितना अच्छा अज्र है। (सूरत आल इम्रान : 133 - 136)
तथा अल्लाह तआला का फरमान है :
﴿ قل يا عبادي الذين أسرفوا على أنفسهم لا تقنطوا من رحمة الله إن الله يغفر الذنوب جميعاً إنه هو الغفور الرحيم ﴾ [سورة الزمر : 53]
‘‘आप कह दीजिए कि ऐ मेरे बन्दों! जिन्हों ने अपनी जानों पर अत्याचार किया है अल्लाह की रहमत से निराश न हो, निःसन्देह अल्लाह तआला सभी गुनाहों को माफ कर देता है, निःसंदेह वह बड़ा क्षमा करने वाला दयालू है। (सूरतुज़्ज़ुमर : 53)
तथा अल्लाह तआला का फरमान है:
﴿ ومن يعمل سوءاً أو يظلم نفسه ثم يستغفر الله يجد الله غفوراً رحيماً ﴾ [سورة النساء : 110]
और जो भी कोई बुराई करे या खुद अपने ऊपर ज़ुल्म करे, फिर अल्लाह तआला से क्षमा मांगे तो अल्लाह को बड़ा क्षमाशील और दयावान पाये गा। (सूरतुन्निसा : 110)
इस मुहासबा, तौबा और इस्तिग़फार के द्वारा हमारे ऊपर अनिवार्य है कि हम रमज़ान का अभिवादन करें, बुद्धिमान आदमी वह है जो अपने नफ्स का मुहासबा करे और मृत्यु के बाद के लिए कार्य करे, और बेबस आदमी वह है जो अपने नफ्स को अपनी इच्छाओं के पीछे लगादे और अल्लाह तआला पर आशायें बांधे।
रमज़ान का महीना लाभ और मुनाफे का महीना है, और बुद्धिमान व्यपारी मौसम को गनीमत समझता है ताकि अपने मुनाफे में वृद्धि करे, अतः इस महीने को इबादत, अधिक नमाज़, क़ुर्आन की तिलावत, लोगों को क्षमा करने, दूसरों के साथ भलाई करने, गरीबों पर दान करने में गनीमत समझो।
चुनाँचे रमज़ान के महीने में स्वर्ग के द्वार खोल दिए जाते हैं, नरक के द्वार बंद कर दिए जाते हैं, शैतान जकड़ दिये जाते हैं और एक आवाज़ (गुहार) लगाने वाला हर रात आवाज़ देता है : ऐ भलाई के इच्छुक, आगे बढ़ और ऐ बुराई के इच्छुक, रूक जा।
अतः ऐ अल्लाह के बंदो, अपने सलफ सालेहीन (पुनीत पूर्वजों) का पालन करते हुए अपने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की सुन्नत से निर्देश प्राप्त करते हुए भलाई करने वालों में से बनो ताकि हम रमज़ान से बख्शे हुए पाप और स्वीकार किए गए नेक अमल के साथ बाहर निकलें।
और इस बात को जान लो कि रमज़ान का महीना सबसे श्रेष्ठ महीना है :
इब्नुल क़ैयिम ने फरमाया : और इसी में से - अर्थात् अल्लाह तआला की पैदा की हुई चीज़ों के बीच एक की दूसरे पर वरीयता में से - रमज़ान के महीने की अन्य शेष महीनों पर वरीयता तथा उसकी अंतिम दहाई को अन्य सभी रातों पर वरीयता देना है। (ज़ादुल मआदः 1/56).
इस महीने को अन्य महीनों पर चार चीज़ों के द्वारा वरीयता प्राप्त है :
प्रथम:
इसके अंदर एक ऐसी रात है जो साल की रातों में सबसे श्रेष्ठ रात है, और वह लैलतुल क़द्र (क़द्र की रात) है। जिसके बारे में अल्लाह सर्वशक्तिमान का फरमान है:
﴿إِنَّا أَنْزَلْنَاهُ فِي لَيْلَةِ الْقَدْرِ (1) وَمَا أَدْرَاكَ مَا لَيْلَةُ الْقَدْرِ (2) لَيْلَةُ الْقَدْرِ خَيْرٌ مِنْ أَلْفِ شَهْرٍ (3) تَنَزَّلُ الْمَلائِكَةُ وَالرُّوحُ فِيهَا بِإِذْنِ رَبِّهِمْ مِنْ كُلِّ أَمْرٍ (4) سَلامٌ هِيَ حَتَّى مَطْلَعِ الْفَجْرِ (5)﴾  [سورة القدر : 1-5]
निःसन्देह हम ने इसे क़द्र (प्रतिष्ठा) की रात में उतारा है। और आप को किस चीज़ ने सूचना दी कि क़द्र की रात क्या है क़द्र की रात एक हज़ार महीने से अधिक श्रेष्ठ है। इस (रात) में फरिश्ते और रूह (जिब्रील) अपने रब के हुक्म से हर काम के लिए उतरते हैं। यह रात फज्र के निकलने तक शान्ति वाली होती है। (सूरतुल क़द्र : 1 – 5)
अतः इस रात में इबादत एक हज़ार महीने की इबादत से सर्वश्रेष्ठ है।
दूसरा:
इस महीने में सर्वश्रेष्ठ पुस्तक सर्वश्रेष्ठ पैगंबर पर अवतरित हुई। अल्लाह तआला का फरमान है:
﴿شَهْرُ رَمَضَانَ الَّذِي أُنْزِلَ فِيهِ الْقُرْآنُ هُدىً لِلنَّاسِ وَبَيِّنَاتٍ مِنَ الْهُدَى وَالْفُرْقَانِ ﴾  [البقرة : 185]
रमज़ान का महीना वह है जिसमें क़ुरआन उतारा गया जो लोगों के लिए मार्गदर्शक है और जिसमें मार्गदर्शन की और सत्य तथा असत्य के बीच अन्तर की निशानियाँ हैं। (सूरतुल बक़राः 185)
तथा अल्लाह तआला ने फरमाया :
﴿ إِنَّا أَنْزَلْنَاهُ فِي لَيْلَةٍ مُبَارَكَةٍ إِنَّا كُنَّا مُنْذِرِينَ فِيهَا يُفْرَقُ كُلُّ أَمْرٍ حَكِيمٍ ﴾ [الدخان : 3-4]
 निःसंदेह हम ने इसे एक बरकत वाली रात में उतारा है, निःसंदेह हम डराने वाले हैं। इसी रात में हर मज़बूत काम का फैसला किया जाता है। (सूरतुद्-दुखान : 3 - 4)
तथा अहमद और तब्रानी ने अपनी मोजमुल कबीर में वासिला बिन अल-असक़अ़् रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि उन्हों ने फरमाया : अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: इब्राहीम अलैहिस्सलाम के सहीफे रमज़ान की पहली रात में अवतरित हुए, तौरात रमज़ान की छः तारीख को अवतरित हुआ, इंजील तेरह रमज़ान को अवतरित हुआ और ज़बूर 18 रमज़ान को अवतरित हुआ और क़ुरआन करीम 24 रमज़ान को अवतरित हुआ। इसे अल्बानी ने अस्सिलसिला अस्सहीहा (हदीस संख्या : 1575) में सहीह क़रार दिया है।
तीसरा : इस महीने में स्वर्ग के द्वार खोल दिये जात हैं, नरक के द्वार बंद कर दिए जाते हैं और शैतान जकड़ दिये जाते हैं:
अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से वर्णित है कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : जब रमज़ान आता है तो स्वर्ग के द्वार खोल दिए जाते है, नरक के द्वार बंद कर दिए जाते हैं और शैतानों को जकड़ दिया जाता है। (बुखारी व मुस्लिम)
तथा नसाई ने अबू हुरैरा रज़ियल्लाहु अन्हु से रिवायत किया है कि अल्लाह के पैगंबर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया : जब रमज़ान आता है तो रहमत के दरवाज़े खोल दिए जाते हैं, नरक के दरवाज़े बंद कर दिए जाते हैं और शैतानों को ज़ंजीरों में जकड़ दिया जाता है। अल्बानी ने इसे सहीहुल जामे (हदीस संख्या : (471) में सहीह कहा है।
तथा तिर्मिज़ी, इब्ने माजा और इब्ने खुज़ैमा ने एक रिवायत में वर्णन किया है कि : जब रमज़ान की पहली रात होती है तो शैतानों और विद्रोही जिन्नों को जकड़ दिया जाता है, नरक के द्वार बंद कर दिए जाते हैं तो उनमें से कोई द्वार खोला नहीं जाता है, और जन्नत के द्वार खोल दिए जाते हैं तो फिर उनमें से कोई द्वार बंद नहीं किया जाता है, और एक आवाज़ लगाने वाला आवाज़ लगाता है: ऐ भलाई के इच्छुक, आगे बढ़ और ऐ बुराई के चाहने वाले, रूक जा। और अल्लाह के कुछ आग से मुक्त किए हुए बंदे होते हैं और यह हर रात होता है। अल्बानी ने इसे सहीहुल जामेअ (हदीस संख्या : 759)
यदि कोई आपत्ति व्यक्त करे कि: हम देखते हैं कि रमज़ान में बुराईयाँ और पाप बहुत अधिक होते हैं, यदि शैतानों को जकड़ दिया गया होता तो ऐसा नहीं होता
तो इसका उत्तर यह है कि : ये मात्र उस आदमी से कम हो जाती हैं जो रोज़े की शर्तों का पालन करता है और उसके आचरण का ध्यान रखता है। या यह कि कुछ शैतानों को जकड़ दिया जाता है और वे विद्रोही शैतान हैं सभी शैतान नहीं हैं। या इस हदीस से अभिप्राय इस महीने में बुराईयों का कम होना है, और यह चीज़ अनुभव की जाती है, क्योंकि इस महीने में बुराई अन्य महीनों से कम होती है, सभी शैतानों के जकड़ दिये जाने से यह आवश्यक नहीं हो जाता है कि अब कोई बुराई या पाप घटित नहीं होगा, इसलिए कि इसके शैतानों के अलावा भी कारण होते हैं, जैसे - बुरी आत्मायें, बुरी आदतें और मनुष्यों में से शैतान लोग। (फत्हुल बारी 4/145).
चौथा : इस महीने के अंदर बहुत सी इबादतें हैं जिनमें से कुछ अन्य महीनों में नहीं पाई जाती हैं जैसे-रोज़ा, क़ियामुल्लैल (तरावीह), खाना खिलाना, एतिकाफ, सदक़ा (दान) और क़ुरआन की तिलावत ।
तथा मैं सर्वोच्च महान अल्लाह से प्रार्थना करता हूँ कि वह सभी को इसकी तौफीक़ दे और रोज़ा रखने, क़ियाम करने और नेकियाँ करने और बुराईयों को त्यागने पर हमारा सहयोग करे।
और सभी प्रशंसा और स्तुति केवल सर्व संसार के पालनहार के लिए है।